भारत की आजादी के समय की वो गलतियाँ जिसकी सजा भारत की जनता आज भी भुगत रही है।, The mistakes made at the time of India's independence are still being paid for by the people of India today.
राजीव दीक्षित के अनुसार, भारत का संविधान मूल रूप से अंग्रेजों द्वारा बनाए गए 1935 के 'गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट' पर आधारित है, जिसमें उनके अपने कानून और शासन प्रणाली का मिश्रण है, और यह पूरी तरह से भारतीय नहीं है, जिसे उन्होंने "अंग्रेजों की गुलामी" का एक रूप बताया, और कहा कि यह देश को पश्चिमीकरण की ओर ले जा रहा है, तथा हमें अपनी मूल स्वदेशी व्यवस्था की ओर लौटना चाहिए।
मुख्य बिंदु:
अंग्रेजों की देन: दीक्षित का मानना था कि भारतीय संविधान के अधिकांश मुख्य अनुच्छेद (लगभग 95) अंग्रेजों द्वारा बनाए गए थे, जिनका उद्देश्य भारतीयों पर शासन करना था, न कि उन्हें स्वतंत्रता देना।
स्थायी गुलामी: उन्होंने तर्क दिया कि यह संविधान, मैकॉले की शिक्षा प्रणाली के साथ मिलकर, भारत को मानसिक और कानूनी रूप से अंग्रेजों का गुलाम बनाए रखता है, क्योंकि कानून और व्यवस्था अभी भी औपनिवेशिक ढांचे पर आधारित है।
स्वदेशी व्यवस्था का अभाव: उनका कहना था कि हम स्वतंत्र तो हुए, लेकिन पूरी तरह से आत्मनिर्भर और अपनी स्वदेशी व्यवस्था स्थापित नहीं कर पाए, क्योंकि संविधान में अपनी व्यवस्था की कमी है।
शिक्षा और कानून पर प्रभाव: राजीव दीक्षित का मानना था कि यह संविधान और शिक्षा प्रणाली देश के आधुनिकीकरण के नाम पर पश्चिमीकरण को बढ़ावा दे रही है, जो भारतीय संस्कृति और अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक है।
संक्षेप में, राजीव दीक्षित भारत के संविधान को अंग्रेजों की विरासत मानते थे और इसे पूरी तरह से भारतीय व्यवस्था के बजाय एक औपनिवेशिक ढांचा मानते थे, जिस पर उन्हें पुनर्विचार करने की आवश्यकता थी।

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