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महारानी ताराबाई की वीर गाथा | Veer Maharani Tarabai Ki Kahani

महारानी ताराबाई की वीर गाथा | Veer Maharani Tarabai Ki Kahani



महारानी ताराबाई (1675-1761 ई.) मराठा साम्राज्य की एक अत्यंत शक्तिशाली और दूरदर्शी शासिका थीं। उन्हें मराठा इतिहास की सबसे महानतम महिला योद्धाओं में से एक माना जाता है, जिन्होंने मुगल सम्राट औरंगजेब के खिलाफ लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी और मराठा साम्राज्य को पतन से बचाया।

**प्रारंभिक जीवन और विवाह:**
* ताराबाई का जन्म 1675 ई. में महाराष्ट्र के तलबीड़ में हुआ था।
* वह मराठा साम्राज्य के प्रसिद्ध सेनापति हंबीरराव मोहिते की बेटी थीं।
* बचपन से ही उन्होंने अपने पिता से राजनीति, युद्ध कौशल, तीरंदाजी और तलवारबाजी में प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
* 8 साल की छोटी सी उम्र में उनका विवाह छत्रपति शिवाजी महाराज के छोटे पुत्र राजाराम महाराज से हुआ था।

**मराठा साम्राज्य की संरक्षिका:**
* 1700 ई. में उनके पति छत्रपति राजाराम की असामयिक मृत्यु हो गई।
* उस समय उनके पुत्र शिवाजी द्वितीय (शिवाजी द्वितीय) मात्र 4 वर्ष के थे।
* राजाराम की मृत्यु के बाद, ताराबाई ने अपने 4 वर्षीय पुत्र को गद्दी पर बैठाया और मराठा साम्राज्य की संरक्षिका बन गईं।

**औरंगजेब से संघर्ष और उपलब्धियां:**
* ताराबाई के शासनकाल में मराठा साम्राज्य पर मुगल सम्राट औरंगजेब का लगातार दबाव था, जो पूरे दक्षिण भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता था।
* ताराबाई ने मुगलों के खिलाफ लगभग 7 वर्षों तक (1700-1707 ई.) सीधी लड़ाई लड़ी।
* उन्होंने मुगलों को कड़ी चुनौती दी और मराठा साम्राज्य को औरंगजेब के प्रकोप से बचाया।
* उन्होंने गुरिल्ला युद्ध (छापामार युद्ध) की रणनीति का कुशलता से प्रयोग किया और मुगलों को कई बार पराजित किया।
* ताराबाई ने न केवल मराठा सेना का नेतृत्व किया, बल्कि उन्होंने सेना और जनता का विश्वास भी जीता, जिससे मराठा शक्ति में वृद्धि हुई।
* 1705 ई. में उन्होंने मुगलों के कब्जे वाले पन्हाला किले को जीता और कोल्हापुर को अपनी राजधानी बनाया।
* उनके नेतृत्व में, मराठा सेना ने गुजरात और मालवा के मुगल-अधिकृत प्रांतों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और वहां अपने कर संग्रहकर्ता (कमाईशदार) नियुक्त किए।
* उनकी रणनीतियों और वीरता के कारण औरंगजेब को मराठाओं के सामने कई बार हार का सामना करना पड़ा।

**बाद का जीवन:**
* औरंगजेब की मृत्यु के बाद, मराठा साम्राज्य में आंतरिक कलह भी हुई, खासकर शाहूजी (शिवाजी के पोते) के साथ उनके संघर्ष हुए।
* ताराबाई ने मराठा साम्राज्य को कठिन परिस्थितियों में भी संभाले रखा।
* उनकी मृत्यु 9 दिसंबर 1761 ई. को 85-86 वर्ष की आयु में हुई।

महारानी ताराबाई को मराठा इतिहास में एक महान वीरांगना और दूरदर्शी शासिका के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपने असाधारण साहस, युद्ध कौशल और नेतृत्व क्षमता से मराठा साम्राज्य को बचाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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