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महाराणा कर्णसिंह व शाहजहां के किस्से | क्यों शाहजहां डरता था कर्णसिंह से, Stories of Maharana Karnsingh and Shahjahan | Why was Shahjahan afraid of Karnsingh

महाराणा कर्ण सिंह व शाहजहां के किस्से | क्यों शाहजहां डरता था कर्ण सिंह से, Stories of Maharana Karnsingh and Shahjahan | Why was Shahjahan afraid of Karnsingh



### महाराजा कर्ण सिंह: मेवाड़ और बीकानेर के शासक एवं उनका ऐतिहासिक महत्व

"महाराजा कर्ण सिंह" भारतीय इतिहास में एक ऐसा नाम है जो किसी एक शासक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मेवाड़ और बीकानेर जैसी प्रमुख रियासतों के महत्वपूर्ण शासकों द्वारा धारण किया गया था। इन दोनों ही शासकों ने अपने-अपने समय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अतिरिक्त, जम्मू और कश्मीर रियासत के उत्तराधिकारी के रूप में डॉ. कर्ण सिंह भी एक प्रसिद्ध व्यक्तित्व हैं।

यहाँ मेवाड़ के महाराणा कर्ण सिंह और बीकानेर के महाराजा कर्ण सिंह का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है:

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### महाराणा कर्ण सिंह (मेवाड़)

**शासनकाल:** 1620 - 1628 ई.

मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश में महाराणा कर्ण सिंह का शासनकाल शांति और निर्माण कार्यों के लिए जाना जाता है। वह महान योद्धा महाराणा प्रताप के पौत्र और महाराणा अमर सिंह प्रथम के ज्येष्ठ पुत्र थे।

**प्रारंभिक जीवन और राज्याभिषेक:**

महाराणा कर्ण सिंह का जन्म 7 जनवरी, 1584 को हुआ था। अपने पिता महाराणा अमर सिंह के शासनकाल में ही उन्होंने प्रशासनिक और सैन्य मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू कर दी थी। 1615 में मुगल सम्राट जहाँगीर के साथ हुई मेवाड़-मुगल संधि में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। अपने पिता के निधन के बाद, वे 26 जनवरी, 1620 को मेवाड़ की गद्दी पर बैठे।

**मुगलों के साथ संबंध:**

महाराणा कर्ण सिंह ने अपने पिता के समय में हुई मुगल संधि का सम्मान करते हुए शांतिपूर्ण संबंध बनाए रखे। वे मुगल दरबार में उपस्थित होने वाले पहले मेवाड़ के राजकुमार थे, हालांकि संधि की शर्तों के अनुसार महाराणा स्वयं कभी दरबार में नहीं गए। उनके इस कदम ने मेवाड़ को वर्षों के संघर्ष के बाद शांति और स्थिरता प्रदान की।

**शाहजहाँ को शरण:**

महाराणा कर्ण सिंह के शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक, शहजादे खुर्रम (बाद में सम्राट शाहजहाँ) को शरण देना था। जब खुर्रम ने अपने पिता जहाँगीर के खिलाफ विद्रोह किया, तो महाराणा कर्ण सिंह ने उन्हें पिछोला झील में बने जगमंदिर में सुरक्षित शरण दी। यह घटना मेवाड़ और मुगलों के बीच बदलते संबंधों का प्रतीक है।

**निर्माण और कला:**

उनके शांत शासनकाल में कला और स्थापत्य को बहुत बढ़ावा मिला। उन्होंने उदयपुर में कर्ण विलास और दिलखुश महल जैसे भव्य महलों का निर्माण करवाया। उन्होंने ही जगमंदिर महल का निर्माण कार्य शुरू करवाया था, जिसे बाद में उनके पुत्र जगत सिंह प्रथम ने पूरा किया।

**निधन:**

मार्च 1628 में महाराणा कर्ण सिंह का निधन हो गया। उनके बाद उनके पुत्र जगत सिंह प्रथम ने राजगद्दी संभाली।

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### महाराजा कर्ण सिंह (बीकानेर)

**शासनकाल:** 1631 - 1669 ई.

बीकानेर के राठौड़ राजवंश में महाराजा कर्ण सिंह एक वीर, कुशल सेनापति और कलाप्रेमी शासक थे। उन्हें 'जंगलधर बादशाह' की उपाधि से भी जाना जाता है।

**प्रारंभिक जीवन और मुगल सेवाएं:**

महाराजा कर्ण सिंह का जन्म 10 जुलाई, 1616 को हुआ था। वे महाराजा सूर सिंह के पुत्र थे। अपने पिता के निधन के बाद वे 1631 में बीकानेर की गद्दी पर बैठे। उन्होंने मुगल सम्राट शाहजहाँ और औरंगजेब के अधीन कई महत्वपूर्ण सैन्य अभियानों में हिस्सा लिया और अपनी वीरता का प्रदर्शन किया।

**औरंगजेब से संबंध और 'जंगलधर बादशाह' की उपाधि:**

मुगल उत्तराधिकार के संघर्ष में उन्होंने औरंगजेब का साथ दिया। औरंगजेब के कट्टरपंथी स्वभाव से परिचित होने के बावजूद, उन्होंने अपनी रियासत और धर्म की रक्षा के लिए कूटनीति का सहारा लिया। कहा जाता है कि जब औरंगजेब ने हिंदू राजाओं को समाप्त करने की योजना बनाई, तो महाराजा कर्ण सिंह ने अन्य राजपूत राजाओं को एकजुट कर इस योजना को विफल कर दिया। इसी घटना के बाद उन्हें राजपूत राजाओं द्वारा 'जंगलधर बादशाह' की उपाधि दी गई।

**साहित्य और कला:**

महाराजा कर्ण सिंह स्वयं एक विद्वान और साहित्य के संरक्षक थे। उनके दरबार में कई कवि और विद्वान आश्रय पाते थे। उन्होंने 'साहित्य कल्पद्रुम' नामक ग्रंथ की रचना की। उनके शासनकाल में बीकानेर चित्रकला शैली का भी विकास हुआ।

**निधन:**

उनका निधन 22 जून, 1669 को औरंगाबाद के निकट हुआ था। उनके बाद उनके पुत्र महाराजा अनूप सिंह बीकानेर के शासक बने।

इस प्रकार, "महाराजा कर्ण सिंह" का नाम भारतीय इतिहास के विभिन्न कालों और क्षेत्रों में वीरता, कूटनीति और कला संरक्षण का प्रतीक रहा है।

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