खरदा का युद्ध: जब निजाम ने मराठों के आगे घुटने टेक दिए,Battle of Kharda: When Nizam surrendered to Marathas
ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण **खरदा का युद्ध** 11 मार्च 1795 को मराठा साम्राज्य और हैदराबाद के निज़ाम के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध मराठा संघ की एक शानदार और निर्णायक जीत थी, और इसे उस आखिरी बड़ी लड़ाई के रूप में याद किया जाता है जिसमें सभी प्रमुख मराठा सरदार पेशवा के झंडे के नीचे एक साथ लड़े थे।
यहाँ खरदा के युद्ध का विस्तृत विवरण दिया गया है:
### युद्ध की पृष्ठभूमि और कारण
इस युद्ध के बीज कई वर्षों से बोए जा रहे थे, जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
1. **चौथ और सरदेशमुखी का विवाद:** मराठे, अपनी सैन्य शक्ति के आधार पर, दक्कन के क्षेत्रों से "चौथ" (राजस्व का एक-चौथाई हिस्सा) और "सरदेशमुखी" (राजस्व का अतिरिक्त दस प्रतिशत) नामक कर वसूलते थे। हैदराबाद के निज़ाम, आसफ़ जाह द्वितीय, ने इन करों का बकाया चुकाने से इनकार कर दिया था, जो एक बड़ी धनराशि बन चुकी थी।
2. **महादजी सिंधिया का निधन:** 1794 में, सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली मराठा सरदार महादजी सिंधिया का निधन हो गया। निज़ाम को लगा कि महादजी की मृत्यु के बाद मराठा संघ कमजोर हो गया है और अब वह उनका सामना कर सकता है।
3. **नाना फड़नवीस की कूटनीति:** पेशवा सवाई माधवराव के प्रधानमंत्री और मराठा साम्राज्य के वास्तविक शासक, नाना फड़नवीस, एक अत्यंत चतुर और दूरदर्शी राजनेता थे। उन्होंने निज़ाम के इरादों को भांप लिया और इसे मराठा शक्ति को फिर से स्थापित करने और सभी मराठा सरदारों को एकजुट करने के एक अवसर के रूप में देखा।
4. **अंग्रेजों की अहस्तक्षेप नीति:** उस समय भारत में गवर्नर-जनरल सर जॉन शोर थे, जो "अहस्तक्षेप की नीति" का पालन कर रहे थे। निज़ाम को उम्मीद थी कि अंग्रेज संकट के समय उसकी मदद करेंगे, लेकिन शोर ने तटस्थ रहने का फैसला किया। इससे निज़ाम अकेला पड़ गया।
### मराठा संघ का एकीकरण
नाना फड़नवीस की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि उन्होंने इस अवसर पर सभी प्रमुख मराठा घरानों को एकजुट कर लिया। पुणे में पेशवा के नेतृत्व में ग्वालियर के सिंधिया, इंदौर के होल्कर, बड़ौदा के गायकवाड़ और नागपुर के भोंसले, सभी अपनी-अपनी सेनाओं के साथ शामिल हुए। यह मराठा संघ की एकता का एक अद्भुत प्रदर्शन था, जिसने युद्ध से पहले ही निज़ाम पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना दिया।
### युद्ध का घटनाक्रम
* **सेनाओं का जमावड़ा:** मराठों ने लगभग 1,30,000 सैनिकों की एक विशाल सेना एकत्रित की, जिसमें घुड़सवार, पैदल सेना और तोपखाना शामिल था।
* **खरदा में घेराबंदी:** मराठा सेना ने तेजी से आगे बढ़ते हुए निज़ाम की सेना को वर्तमान महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित **खरदा** नामक स्थान पर एक नदी के किनारे घेर लिया।
* **निर्णायक संघर्ष:** 11 मार्च 1795 को मुख्य लड़ाई हुई। निज़ाम की सेना, जिसका नेतृत्व उसके फ्रांसीसी सेनापति मॉन्सियर रेमंड कर रहे थे, ने मराठों पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन सिंधिया के तोपखाने और जीवा दादा केरकर के नेतृत्व में हुए जवाबी हमले ने निज़ाम की सेना के पैर उखाड़ दिए।
* **निज़ाम का पलायन और आत्मसमर्पण:** लड़ाई बहुत लंबी नहीं चली। निज़ाम की सेना में भगदड़ मच गई और वह खुद अपनी जान बचाकर पास के खरदा किले में छिप गया। मराठों ने किले को चारों ओर से घेर लिया, जिससे निज़ाम के पास आत्मसमर्पण करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।
### खरदा की संधि और परिणाम
अप्रैल 1795 में निज़ाम को एक अपमानजनक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसे **खरदा की संधि** के नाम से जाना जाता है। इसकी प्रमुख शर्तें थीं:
* निज़ाम ने दौलताबाद, औरंगाबाद और शोलापुर सहित कई महत्वपूर्ण और रणनीतिक किले और क्षेत्र मराठों को सौंप दिए।
* युद्ध के हर्जाने के रूप में निज़ाम ने मराठों को 3 करोड़ रुपये की भारी राशि देना स्वीकार किया।
* चौथ और सरदेशमुखी का सारा बकाया चुकाने पर सहमति बनी।
* निज़ाम के प्रधानमंत्री, मुशीर-उल-मुल्क को मराठों के पास बंधक के रूप में रखा गया जब तक कि संधि की शर्तें पूरी नहीं हो जातीं।
### युद्ध का महत्व
* **मराठा एकता का अंतिम प्रदर्शन:** यह युद्ध मराठा संघ की एकता और सामूहिक शक्ति का अंतिम महान उदाहरण था। इसके बाद मराठा सरदार आपसी संघर्ष में उलझ गए और फिर कभी इस तरह एकजुट नहीं हो सके।
* **नाना फड़नवीस के चरमोत्कर्ष:** यह जीत नाना फड़नवीस के राजनीतिक जीवन और कूटनीतिक कौशल का शिखर थी। उन्होंने साबित कर दिया कि मराठा अभी भी भारत की सबसे प्रमुख शक्ति हैं।
* **निज़ाम की शक्ति का ह्रास:** इस हार ने निज़ाम की प्रतिष्ठा और शक्ति को गहरा आघात पहुँचाया और उसने भविष्य में अंग्रेजों पर अपनी निर्भरता बढ़ा दी।
* **एक युग का अंत:** दुर्भाग्य से, यह शानदार जीत मराठा साम्राज्य के लिए एक नई सुबह नहीं ला सकी। उसी वर्ष (अक्टूबर 1795) में युवा पेशवा सवाई माधवराव की आत्महत्या ने मराठा राजनीति में एक शून्य पैदा कर दिया, जिससे आंतरिक कलह और षड्यंत्रों का दौर शुरू हुआ। इसके कुछ वर्षों बाद 1800 में नाना फड़नवीस की मृत्यु के साथ ही मराठा साम्राज्य का पतन तेज हो गया।
संक्षेप में, खरदा का युद्ध मराठों के लिए एक गौरवशाली क्षण था, लेकिन यह उनके स्वर्णिम युग के अस्त होने से ठीक पहले का आखिरी दीपक साबित हुआ।
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