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राजधर्म के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया : वीर अहीर देवायत बोदार का इतिहास, Sacrificed everything for Rajdharma: History of Veer Ahir Devayat Bodar

राजधर्म के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया : वीर अहीर देवायत बोदार का इतिहास, Sacrificed everything for Rajdharma: History of Veer Ahir Devayat Bodar




वीर अहीर देवायत बोदार गुजरात के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पूजनीय व्यक्ति हैं। उन्हें उनकी असाधारण बहादुरी, बलिदान और "आसरा धर्म" निभाने के लिए जाना जाता है। उनका नाम गुजरात के शौर्य और निष्ठा का प्रतीक बन गया है।

**पृष्ठभूमि:**

लगभग 10वीं-11वीं शताब्दी में, गुजरात के जूनागढ़ में चुडासमा वंश के राजा रा 'दियास का शासन था। पाटन के सोलंकी वंश के राजा दुर्लभसेन ने जूनागढ़ पर आक्रमण किया और रा 'दियास को युद्ध में हरा दिया, जिससे रा 'दियास की मृत्यु हो गई। रा 'दियास की रानी (जो दुर्लभसेन की बहन थी) ने अपने नवजात पुत्र, रा 'नवघण (जो एक वर्ष से भी कम आयु का था) की जान बचाने के लिए उसे एक विश्वसनीय अहीर सरदार, देवायत बोदार को सौंप दिया। रानी ने देवायत बोदार से वचन लिया कि वह नवघण की रक्षा करेगा और उसे जूनागढ़ का राज्य वापस दिलाएगा।

**देवायत बोदार का बलिदान:**

देवायत बोदार, जो जूनागढ़ के अलिदर-बोडीदर गांव के रहने वाले थे, ने रा 'नवघण को अपने पुत्र की तरह पाला। उनके अपने भी दो बच्चे थे - एक पुत्र उगा (वाहन) और एक पुत्री जाहल। नवघण और उगा एक ही उम्र के थे और देखने में काफी समान थे।

जब रा 'नवघण और उगा लगभग 12 वर्ष के हुए, तो सोलंकी राजा दुर्लभसेन को यह खबर मिली कि रा 'दियास का पुत्र जीवित है और देवायत बोदार के पास पल रहा है। राजा ने देवायत बोदार को अपने दरबार में बुलाया और सच्चाई जानने की कोशिश की। देवायत बोदार ने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए सच स्वीकार कर लिया। राजा ने उसे रा 'नवघण को दरबार में लाने का आदेश दिया।

देवायत बोदार ने अपनी पत्नी सोनल (जो अहिराणी के नाम से भी जानी जाती थीं) को एक सांकेतिक संदेश भेजा: "रा' राखी ने बात करजे अहिराणी!" (अर्थ: "अहिराणी, बात करना, लेकिन 'रा' को बचाकर")। सोनल ने इस संदेश का अर्थ समझा कि उन्हें रा 'नवघण को सुरक्षित रखना है और उसकी जगह अपने पुत्र उगा को राजा के पास भेजना है।

यह जानते हुए भी कि इसका अर्थ अपने ही पुत्र का बलिदान होगा, अहिराणी सोनल ने अपने पुत्र उगा को तैयार किया और उसे राजा के पास भेज दिया। दरबार में उगा को रा 'नवघण समझ लिया गया, क्योंकि दोनों में भेद कर पाना मुश्किल था। राजा दुर्लभसेन ने देवायत बोदार को अपने पुत्र उगा की गर्दन अपनी तलवार से काटने का आदेश दिया, ताकि यह साबित हो सके कि वह वास्तव में रा 'नवघण नहीं है।

राजधर्म और अपने दिए हुए वचन को निभाने के लिए, देवायत बोदार ने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर अपने ही पुत्र उगा का बलिदान कर दिया। यह दृश्य अत्यंत मार्मिक था, लेकिन देवायत और उनकी पत्नी ने अपनी निष्ठा का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया। राजा अभी भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हुआ और उसने अहिराणी सोनल को भी एक क्रूर परीक्षा दी। उसने कहा कि वह अपने मृत पुत्र के सिर से आँखें निकाले और उन पर बिना एक भी आँसू बहाए चले। अहिराणी ने भी यह कठिन परीक्षा पूरी की, जिससे राजा को विश्वास हो गया।

**प्रतिशोध और रा 'नवघण का राज्याभिषेक:**

अपने पुत्र के बलिदान के बाद, देवायत बोदार ने सोलंकी राजा के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का संकल्प लिया। उन्होंने अहीर समुदाय को एकजुट किया और सोलंकी राजा दुर्लभसेन पर हमला कर दिया। भीषण युद्ध के बाद, अहीरों की सेना विजयी हुई और देवायत बोदार ने सोलंकी राजा की हत्या कर अपने पुत्र की मृत्यु का प्रतिशोध लिया।

इसके बाद, देवायत बोदार ने रा 'नवघण को जूनागढ़ की गद्दी पर बैठाया और अपने रक्त से उसका राजतिलक किया। रा 'नवघण ने 1025 ईस्वी से 1044 ईस्वी तक शासन किया। उन्होंने भी अपनी धर्म बहन जाहल (देवायत बोदार की पुत्री) की रक्षा के लिए सिंध प्रांत के हमीर सुमरो से युद्ध किया और उसे पराजित किया।

**देवायत बोदार की विरासत:**

वीर अहीर देवायत बोदार का बलिदान और निष्ठा आज भी गुजरात के इतिहास में एक अमर गाथा के रूप में याद की जाती है। वे "आसरा धर्म" (शरणार्थी की रक्षा का धर्म) का सबसे बड़ा उदाहरण माने जाते हैं। उनका बलिदान यह दर्शाता है कि कैसे एक साधारण व्यक्ति ने अपने सिद्धांतों और वचन के लिए असाधारण त्याग किया। जूनागढ़ में देवायत बोदार का स्मारक और उनके सम्मान में बनाए गए मंदिर उनकी वीरता और बलिदान की याद दिलाते हैं। उनकी कहानी गुजरात की लोककथाओं और गीतों का एक अभिन्न अंग है।

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