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एकलौता सेनापति संताजी घोरपड़े जिसके आगे औरंगज़ेब को भी घुटने टेकने पड़े, The only commander Santaji Ghorpade in front of whom even Aurangzeb had to kneel,

एकलौता सेनापति संताजी घोरपड़े जिसके आगे औरंगज़ेब को भी घुटने टेकने पड़े, The only commander Santaji Ghorpade in front of whom even Aurangzeb had to kneel,



संताजी घोरपड़े (1660-1696) मराठा साम्राज्य के एक अत्यंत पराक्रमी और कुशल सेनापति थे, विशेष रूप से छत्रपति राजाराम प्रथम के शासनकाल के दौरान। उन्हें गुरिल्ला युद्ध (छापामार युद्ध) के सबसे बड़े विशेषज्ञों में से एक माना जाता है। धनाजी जाधव के साथ मिलकर उन्होंने 1689 से 1696 तक मुगलों के खिलाफ कई सफल अभियान चलाए।

यहां संताजी घोरपड़े के बारे में कुछ विस्तृत जानकारी दी गई है:

**प्रारंभिक जीवन और सैन्य करियर:**
* संताजी म्हालोजी घोरपड़े के सबसे बड़े पुत्र थे, जिन्होंने छत्रपति संभाजी के शासनकाल में कुछ समय के लिए सेनापति के रूप में कार्य किया था।
* अपने करियर के शुरुआती दौर में, संताजी ने हम्बीराव मोहिते के मार्गदर्शन में तरक्की की।
* संताजी और उनके छोटे भाई बहिरजी ने 1679 में जालना के शिवाजी महाराज के अभियान में उनका साथ दिया था।
* राजाराम के शासनकाल की शुरुआत में, 1689 में, संताजी ने 'पंचा हजारी' अधिकारी, यानी 5,000 सैनिकों के कमांडर का पद प्राप्त किया था।

**मुगलों के खिलाफ अभियान और वीरता:**
* संताजी घोरपड़े को उनकी निडर सैन्य अभियानों के लिए जाना जाता था। उन्होंने अपनी तीक्ष्ण रणनीतियों और साहसिक हमलों से मुगल सेना को कड़ी टक्कर दी।
* उन्होंने अपनी रणनीति में गुरिल्ला युद्ध, घात लगाकर हमला करने और तीव्र गतिशीलता का बखूबी इस्तेमाल किया, जिससे मुगल सेना को प्रभावी ढंग से हार मिली।
* वे छत्रपति संभाजी को पकड़ने वाले मुकर्रब खान सहित चार प्रमुख मुगल जनरलों की मौत के लिए जिम्मेदार थे।
* मुगल रिकॉर्ड बताते हैं कि जो कोई भी संताजी के खिलाफ लड़ा, या तो मारा गया या पकड़ लिया गया।
* उनका सबसे प्रसिद्ध कदम औरंगजेब के शिविर पर सीधा हमला करना था, ऐसा करने की हिम्मत बहुत कम लोग करते थे। मराठा सैनिकों ने सोचा कि औरंगजेब इस हमले में मारा गया था, लेकिन औरंगजेब अपनी बेटी के तम्बू में रात बिताकर बच निकला।
* 1690 में, राजाराम ने उन्हें उनकी बहादुरी के लिए 'मामलकट-मदार' की उपाधि से सम्मानित किया।

**धनजी जाधव से संबंध और आंतरिक संघर्ष:**
* संताजी और धनाजी जाधव दोनों ही मराठा साम्राज्य के प्रमुख सेनापति थे और उनकी सैन्य क्षमता बेजोड़ थी।
* हालाँकि, उनके स्वभाव में काफी अंतर था। संताजी एक सख्त सैन्य अनुशासक और स्वराज के कट्टर भक्त थे, जबकि धनाजी का स्वभाव कुछ हद तक नरम था।
* संताजी ने शिवाजी महाराज द्वारा निर्धारित अनुशासनात्मक नियमों का कड़ाई से पालन किया। उनका व्यवहार हमेशा विवेकपूर्ण लेकिन कई मामलों में सख्त और कठोर होता था, जैसे कि सेना के शिविरों में महिलाओं और बच्चों को नहीं ले जाना; वरिष्ठों के आदेशों का अक्षरशः पालन करना; लूट का हिसाब बिना किसी अपेक्षा के देना; कोई धोखाधड़ी नहीं होनी चाहिए।
* उनकी कठोरता के कारण छत्रपति राजाराम के साथ तनाव पैदा हो गया। दरबार में कुछ विवाद के बाद, संताजी अपनी बड़ी सेना (20 से 25 हजार सैनिक) के साथ जिंजी से बाहर चले गए।
* राजाराम को लगा कि उनके एक विद्रोही कमांडर के पास इतनी बड़ी सेना होना जोखिम भरा है।
* एक घटना में, राजाराम ने धनाजी का अभिनंदन किया, जबकि संताजी ने हाल ही में कासिम खान और हिम्मत खान दोनों को हराकर असाधारण जीत हासिल की थी। संताजी इस अपमान को सहन नहीं कर पाए।

**मृत्यु:**
* अंततः, संताजी घोरपड़े की हत्या तब हुई जब वे निहत्थे और प्रार्थना कर रहे थे। उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति ने मारा था जो संताजी द्वारा पहले मारे गए एक रिश्तेदार का बदला ले रहा था।
* कुछ इतिहासकारों का यह भी अनुमान है कि राजाराम की गुप्त प्रेरणा संताजी की बाद में हुई हत्या के पीछे थी।
* अगर वे जीवित रहते, तो ऐसी प्रबल संभावना है कि औरंगजेब अपने शासनकाल का अंत नहीं देख पाता।

संताजी घोरपड़े मराठा इतिहास के एक महान योद्धा थे, जिनकी वीरता, रणनीति और मुगलों को चुनौती देने की क्षमता ने मराठा साम्राज्य को संभाजी की मृत्यु के बाद भी जीवित रहने में मदद की। उनकी कहानी साहस, बुद्धिमत्ता और बलिदान से भरी हुई है।

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