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21 सैनिकों ने 12000 दुश्मनों को धूल चटाई थी, सारागढ़ी की लड़ाई| Battle of Saragarhi History in hindi| 36 Sikhs Regiment

21 सैनिकों ने 12000 दुश्मनों को धूल चटाई थी, सारागढ़ी की लड़ाई| Battle of Saragarhi History in hindi| 36 Sikhs Regiment



सारागढ़ी की लड़ाई, जो 12 सितंबर 1897 को लड़ी गई थी, सैन्य इतिहास की सबसे बहादुरी भरी और अविश्वसनीय लड़ाइयों में से एक मानी जाती है। यह ब्रिटिश भारतीय सेना के 36वीं सिख रेजिमेंट (जो अब भारतीय सेना की 4वीं सिख रेजिमेंट है) के 21 सिख सैनिकों और लगभग 10,000 से 12,000 अफरीदी और ओरकजई आदिवासी योद्धाओं के बीच लड़ी गई थी।

**पृष्ठभूमि:**
यह लड़ाई ब्रिटिश भारत के उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत (जो अब पाकिस्तान में है) में तिराह अभियान से पहले हुई थी। ब्रिटिश सेना इस क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए किलों की एक श्रृंखला को पुनर्निर्मित कर रही थी, जो मूल रूप से महाराजा रणजीत सिंह द्वारा बनाए गए थे। इनमें से दो प्रमुख किले फोर्ट लॉकहार्ट और फोर्ट गुलिस्तान थे। ये दोनों किले एक-दूसरे से सीधे दिखाई नहीं देते थे, इसलिए इनके बीच संचार स्थापित करने के लिए सारागढ़ी नामक एक छोटी सी चौकी स्थापित की गई थी। सारागढ़ी पोस्ट एक चट्टानी पहाड़ी की चोटी पर स्थित थी, जिसमें एक छोटा ब्लॉक हाउस, किले की दीवार और एक सिग्नलिंग टॉवर था।

**लड़ाई का कारण:**
1897 में, अफगान आदिवासियों ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया। वे संचार लाइनों को काटकर फोर्ट लॉकहार्ट और फोर्ट गुलिस्तान को अलग-थलग करना चाहते थे। 27 अगस्त से 11 सितंबर 1897 के बीच, पश्तूनों ने इन किलों पर कब्ज़ा करने के कई प्रयास किए, लेकिन 36वीं सिख रेजिमेंट द्वारा उन्हें विफल कर दिया गया। 12 सितंबर 1897 को, गुल बादशाह के नेतृत्व में लगभग 10,000 से 12,000 अफरीदी और ओरकजई आदिवासियों ने सारागढ़ी पोस्ट को घेर लिया।

**लड़ाई का विवरण:**
सारागढ़ी पोस्ट पर हवलदार ईशर सिंह के नेतृत्व में 36वीं सिख रेजिमेंट के केवल 21 सिख सैनिक तैनात थे। अफगानों ने सिखों को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा, लेकिन हवलदार ईशर सिंह ने अपने सैनिकों के साथ अंतिम सांस तक लड़ने का फैसला किया।

* **अत्यधिक संख्या में कमी:** सिख सैनिक संख्या में बहुत कम थे। हर सिख सैनिक के मुकाबले लगभग 500 अफगान आदिवासी थे।
* **हथियारों की कमी:** उनके पास केवल बोल्ट-एक्शन राइफलें थीं, जिनमें सीमित गोला-बारूद था (अनुमानतः प्रति सैनिक 400 राउंड)।
* **सहायता की कमी:** आस-पास के किलों से कोई सहायता मिलने की उम्मीद नहीं थी, क्योंकि आदिवासियों ने संचार लाइनों को काट दिया था और सहायता भेजने के प्रयासों को विफल कर दिया था।

लड़ाई सुबह शुरू हुई जब आदिवासियों ने सारागढ़ी पोस्ट पर हमला किया। सिख सैनिकों ने बहादुरी से उनका सामना किया और उन्हें सात घंटे तक रोके रखा। उन्होंने लगभग 200 हमलावरों को मार गिराया और 600 को घायल कर दिया। आदिवासियों ने किले के दरवाजों और दीवारों को तोड़ने की कोशिश की, और जब वे अंदर घुसने में सफल रहे, तो लड़ाई आमने-सामने की हाथापाई में बदल गई।

एक-एक करके सभी सिख सैनिक शहीद हो गए। सिगनलमैन गुरमुख सिंह, जो युद्ध की जानकारी कर्नल हॉटन को दे रहे थे, अंतिम बचे हुए रक्षक थे। उनका अंतिम संदेश यह पूछना था कि क्या वह अपनी राइफल उठा सकते हैं और लड़ सकते हैं।

**परिणाम और महत्व:**
यद्यपि सारागढ़ी पोस्ट पर अफगानों ने कब्ज़ा कर लिया और सभी 21 सिख सैनिक शहीद हो गए, लेकिन उनकी बहादुरी और दृढ़ संकल्प ने ब्रिटिश सेना को फोर्ट गुलिस्तान और फोर्ट लॉकहार्ट को तैयार करने के लिए महत्वपूर्ण समय दिया। दो दिन बाद ब्रिटिश सेना ने उस स्थान पर पुनः अधिकार कर लिया।

यह लड़ाई सैन्य इतिहास में "अंतिम संघर्ष" (Last Stand) के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है। सभी 21 शहीद सिख सैनिकों को मरणोपरांत उस समय के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया। ब्रिटिश सिख रेजिमेंट की सभी टुकड़ियां हर साल 12 सितंबर को सारागढ़ी दिवस को रेजिमेंटल बैटल ऑनर्स डे के रूप में मनाती हैं। इस लड़ाई को भारत और ब्रिटेन दोनों में बहादुरी और बलिदान के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है। पंजाब सरकार ने 2017 में सैनिकों के बलिदान को सम्मान देने के लिए 12 सितंबर को 'सारागढ़ी दिवस' के रूप में अवकाश घोषित किया। इस लड़ाई पर कई किताबें लिखी गई हैं और 2019 में अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म 'केसरी' भी बनी है।

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