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कश्मीर नरसंहार और भारतीय मीडिया की भूमिका।


 


क्या आपने कभी सोचा है कि जब कश्मीर जल 
रहा था वह हिंदुओं का नरसंहार चल रहा था 
अपने ही देश में शरणार्थी बना दिया गया तब 
देश का मीडिया और न्यायपालिका त्याग कर 
रहे थे 
यह बात 90 के दशक की है जब कश्मीर में 
आतंकवाद चरम पर था आए दिन हिंदुओं की 
हत्याएं हो रही थी फिर एक दिन आया जब 
रातोरात लाखों लोगों को कश्मीर घाटी से 
खदेड़ दिया गया आपको यह जानकर संभवता 
आश्चर्य हो कि तब भी भारतीय मीडिया 
बिल्कुल वही कहा था जो आज का रहा है 
मीडिया का यह चरित्र हर भारतीय को जाना 
चाहिए 
[संगीत] 
कि 31 मार्च 1990 के इंडिया टुडे के अंत 
में यह लेख छपा था इसकी हेडलाइन देखिए 
हिंदी में इसका अर्थ है 
कश्मीरी हिंदू सांप्रदायिक तनाव पैदा करने 
के लिए घाटी छोड़कर भाग रहे हैं इस लेख 
में बताया गया था कि आरएसएस और विश्व 
हिंदू परिषद ने कश्मीरी पंडितों के बीच एक 
उन्माद की स्थिति पैदा कर दी है वह स्वयं 
ही अपने घर-बार छोड़कर जा रहे हैं ताकि 
घाटी में अमन-चैन के माहौल को खराब किया 
जा सके इस लूट में कश्मीर हिंसा के लिए 
आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद को जिम्मेदार 
बताया गया इसके अनुसार वास्तव में कश्मीरी 
हिंदुओं नहीं बल्कि मुसलमानों का पलायन हो 
रहा है कश्मीरी मुसलमान मुक्त दिल्ली के 
बाजारों में शॉल और कालीन बेचने को मजबूर 
है रिपोर्ट में हिंदुओं की हत्या को यह 
कहते हुए सही भी ठहराया गया कि जो लोग 
मारे गए उनमें से अधिकांश पंडित है जो कि 
ऊंचे सरकारी पदों पर बैठे थे 
मैं इंडिया टुडे की रिपोर्ट को लिखने वाले 
पत्रकार थे पंकज पचौरी वहीं पंकज पचौरी जो 
बाद में लंबे समय तक एनडीटीवी नाम के चैनल 
में रहे संभवत यही पत्रकारिता थी जिसके 
पुरस्कार स्वरूप उन्हें मनमोहन सिंह का 
मीडिया सलाहकार बनाया गया इंडिया टुडे ही 
नहीं उस दौर के अधिकांश पत्र-पत्रिकाओं ने 
कश्मीर के हिंदू नरसंहार को आतंकवाद नहीं 
बल्कि अमीर और गरीब के बीच का संघर्ष 
बताया था उस दौर में मीडिया आज की तरह 
विकसित नहीं था एक आप चैनल से और कुछ 
पत्र-पत्रिकाएं उनमें काम करने वाले 
अधिकांश पत्रकार वास्तव में कांग्रेस या 
वामपंथी दलों के वैचारिक कार्यकर्ता हुआ 
करते थे 
मैं 
अपनी भारत विरोधी पत्रकारिता के लिए बदनाम 
हो चुके एनडीटीवी ने भी हिंदुओं के पलायन 
पर कुछ समय बाद एक रिपोर्ट की थी विवादित 
पत्रकार बरखा दत्त ने इस में हिंदुओं के 
नरसंहार को सही ठहराते हुए जो कुछ कहा था 
वह प्रेमसुख नीचे आ 
तो फिर यह प्रशिक्षण से वंचित 
क्लिक ऑफिस वाले singh11 और चीनी टाइम पर 
सबस्क्राइब 
सब्सक्राइब टो 
मैं इंडिया टुडे और एनडीटीवी जैसे 
संस्थानों ने कश्मीर के अलगाववादी 
मुसलमानों को गरीब और बेचारा बताया और 
हिंदुओं को कट्टरपंथी और सोशल हिंदुओं के 
हत्यारों के अधिकांश समाचार भारतीय मीडिया 
द्वारा यात्रियों सेंसर कर दिए गए या फिर 
उन्हें आपराधिक घटना की तरह दिखाया गया हर 
ऐसे मामले के बाद मीडिया में बैठे वामपंथी 
और जिहादी प्रसाद इसे अमीर-गरीब का संघर्ष 
बताकर भारतीय जनमानस की आंखों में धूल 
झोंक रहे किसी ने यह पूछने का प्रयास नहीं 
किया कि अमीर गरीब के बीच अंतर तो भारत के 
कई और क्षेत्रों में भी है फिर यह फोन 
खराब वक्त कश्मीर नहीं क्यों हो रहा है 
विश्व के इतिहास में किसी नरसंघार का 
मीडिया द्वारा ऐसा बचाव कहीं और देखने को 
नहीं मिलता है 
कि जब कश्मीर जल रहा था तब केंद्र में 
राजीव गांधी की सरकार थी हालांकि तब तक 
स्थिति कुछ हद तक नियंत्रित वर्ष 1989 के 
दिसंबर महीने वीपी सिंह की सरकार बनी है 
कि कश्मीर के नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद को 
गृहमंत्री बनाया गया सरकार के शपथ लेने के 
मात्र एक सप्ताह बाद यानी आठ दिसंबर को 
मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद ने 
अपहरण का नाटक रच दिया गया बदले में वीपी 
सिंह सरकार ने पांच कश्मीरी आतंकवादियों 
को रिहा कर दिया है 
है तब जाकर पहली बार पता चला कि कश्मीर 
में स्थिति इतनी खराब हो चुकी है देश में 
हंगामा मच गया जब दबाव बढ़ा तो वीपी सिंह 
ने 19 जनवरी 1954 90 को जम्मू कश्मीर में 
राष्ट्रपति शासन लगा दिया लेकिन केंद्र 
सरकार के इस फैसले की कीमत सैकड़ों 
कश्मीरी हिंदुओं ने अपनी जान देकर और 
लाखों को विस्थापित होकर चुकानी पड़े 19 
जनवरी 1954 90 की उसी रात को मस्जिद से 
लाउडस्पीकर पर घोषणा की गई और लाखों 
काफिरों को रातों-रात उनके पूर्वजों की 
धरती को छोड़ने को विवश कर दिया गया 
कि फारुख अब्दुल्ला के लिए वह राष्ट्रपति 
शासन का बदला लेने का मौका था 
में 19 जनवरी उन्नीस सौ नब्बे को अपने 
घरों से खड़े गए कश्मीरी हिंदुओं ने कभी 
कल्पना नहीं की होगी कि एक दिन धारा 370 
हटेगी और उनके घर लौटने की उम्मीद पैदा 
होगी लेकिन वह असंभव भी आज संभव हो चुका 
है कश्मीरी पंडितों को उनकी खोई जमीन और 
घर वापस जलाए जा रहे हैं पहली बार कश्मीर 
में इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा तोड़े 
गए हिंदू मंदिरों के रखरखाव और मरम्मत पर 
ध्यान दिया जा रहा है यह सब भारतीय मीडिया 
की आंखों में चुभ रहा है कश्मीर में 
हिंदुओं के साथ हुए अन्याय की यह कहानी 
हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी पता होनी 
चाहिए हिंदुओं के इस नरसंहार के लिए 
दोस्ती हर चहरे को याद रखना होगा ताकि फिर 
से वह कोई घटना करने पर इस रिपोर्ट में 
हमने जो कुछ भी बताया उसका संदर्भ आप इस 
वीडियो डिस्क्रिप्शन में पा सकते हैं।

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