उन्नाव के राजा राव राम बख्श सिंह की कहानी, Story of Unnao's king Rao Ram Baksh Singh,
**राजा राव राम बख्श सिंह** 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख और वीर नायक थे। वे उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के डौंडियाखेड़ा रियासत के शासक और बैस राजपूत वंश से थे उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है।
### जीवन और योगदान
- **राज्याभिषेक और क्षेत्र:**
1840 में उन्होंने डौंडियाखेड़ा रियासत की बागडोर संभाली। यह वह समय था जब अंग्रेज धीरे-धीरे अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे[4]।
- **1857 की क्रांति में भूमिका:**
राजा राव राम बख्श सिंह ने आसपास के राजाओं और स्वतंत्रता सेनानियों को संगठित किया, खासकर लखनऊ, कानपुर, फतेहपुर और रायबरेली के क्रांतिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाई, जिससे अंग्रेजों को भारी नुकसान उठाना पड़ा[2][6]।
- **अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष:**
उनकी रणनीति के चलते अंग्रेज जनरल हैवलॉक को भी लखनऊ से लौटना पड़ा था। एक प्रसिद्ध घटना में, जब अंग्रेज सैनिक भागकर डौंडियाखेड़ा के शिव मंदिर में छुप गए, तो राजा राव राम बख्श सिंह और उनके साथियों ने मंदिर को घेरकर उसमें आग लगा दी, जिससे 10-12 अंग्रेज सैनिक जिंदा जल गए[2][6]। इस घटना से वे अंग्रेजों के निशाने पर आ गए।
- **गिरफ्तारी और बलिदान:**
अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने के लिए इनाम घोषित किया। अपने ही एक विश्वासपात्र की मुखबिरी के कारण वे गिरफ्तार हुए। 28 दिसंबर 1861 को बक्सर के शिवालय के पास एक बरगद के पेड़ पर उन्हें फांसी दे दी गई[1][6]। कहा जाता है, फांसी के दौरान रस्सी दो बार टूटी थी, क्योंकि उनके गले में स्फटिक की माला थी
- **किले का विध्वंस:**
अंग्रेजों ने उनकी फांसी के बाद डौंडियाखेड़ा के किले को तोपों से ध्वस्त करवा दिया, ताकि उनकी कोई भी निशानी शेष न रहे
### अन्य तथ्य
- **धार्मिक आस्था:**
राजा साहब मां चंद्रिका देवी के भक्त थे
- **डौंडियाखेड़ा का 'महाखजाना':**
2013 में डौंडियाखेड़ा का किला एक बार फिर चर्चा में आया, जब वहां 1000 टन सोना दबा होने की अफवाह फैली, लेकिन खुदाई में कुछ नहीं मिला
- **स्मारक और सम्मान:**
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उनकी प्रतिमा का अनावरण किया गया
राजा राव राम बख्श सिंह का जीवन साहस, संगठन और बलिदान का प्रतीक है। उन्होंने न केवल अपने क्षेत्र में, बल्कि पूरे अवध और आसपास के जिलों में स्वतंत्रता की अलख जगाई और अंग्रेजी हुकूमत के लिए एक बड़ी चुनौती बने रहे
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