महारानी जिंद कौर | दलीप सिंह की माँ | सिख साम्राज्य के महाराजा रणजीत सिंह, Maharani Jind Kaur | Mother of Duleep Singh | Maharaja of Sikh Empire Ranjit Singh
## महारानी जिंद कौर: पंजाब की अंतिम सिख साम्राज्ञी की अनकही कहानी
महारानी जिंद कौर (1817-1863), सिख साम्राज्य के अंतिम शासक महाराजा दलीप सिंह की माँ और महाराजा रणजीत सिंह की सबसे छोटी पत्नी थीं। उन्हें पंजाब की "रानी जिन्दां" के नाम से भी जाना जाता है। वह अपनी सुंदरता, बुद्धिमत्ता और दृढ़ संकल्प के लिए प्रसिद्ध थीं। उन्होंने अपने नाबालिग बेटे के लिए संरक्षक के रूप में शासन किया और पंजाब पर ब्रिटिश नियंत्रण के खिलाफ एक शक्तिशाली प्रतिरोध का नेतृत्व किया।
### प्रारंभिक जीवन और विवाह
जिंद कौर का जन्म 1817 में सियालकोट के चंडूर गाँव में हुआ था। उनके पिता मन्ना सिंह औलख एक शाही केनेल के पर्यवेक्षक थे। उनकी सुंदरता और बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर, महाराजा रणजीत सिंह ने 1835 में उनसे विवाह किया। 1838 में, उन्होंने अपने इकलौते बेटे दलीप सिंह को जन्म दिया।
### रीजेंट के रूप में शासन
1839 में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद, सिख साम्राज्य में अराजकता और अस्थिरता का दौर शुरू हुआ। कई हत्याओं और सत्ता संघर्षों के बाद, 1843 में, पांच वर्षीय दलीप सिंह को सिंहासन पर बैठाया गया। महारानी जिंद कौर उनकी संरक्षक बनीं और राज्य के मामलों को अपने हाथ में ले लिया।
एक शासक के रूप में, उन्होंने राजस्व प्रणाली में सुधार और सेना को पुनर्गठित करने सहित कई प्रशासनिक बदलाव किए। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ थीं और उन्होंने दरबारी गुटों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश की। हालाँकि, उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें सिख सरदारों के बीच आंतरिक विभाजन और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का बढ़ता खतरा शामिल था।
### अंग्रेजों के खिलाफ प्रतिरोध
अंग्रेज, जो पंजाब पर कब्जा करने के अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे, ने महारानी जिंद कौर को अपने विस्तार के लिए एक बड़े खतरे के रूप में देखा। उन्होंने उन पर ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया और उन्हें "पंजाब की मेसालिना" (एक चालाक रोमन साम्राज्ञी का संदर्भ) के रूप में बदनाम किया।
1845-46 में पहले आंग्ल-सिख युद्ध में सिखों की हार के बाद, अंग्रेजों ने दलीप सिंह को शासक के रूप में बनाए रखा, लेकिन महारानी को लाहौर से हटा दिया और उनकी पेंशन कम कर दी। उन्हें शेखूपुरा के किले में कैद कर दिया गया था। हालाँकि, उन्होंने वहां से भागकर नेपाल में शरण ली, जहाँ उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना प्रतिरोध जारी रखा।
1848-49 में दूसरे आंग्ल-सिख युद्ध में सिखों की अंतिम हार और पंजाब के ब्रिटिश साम्राज्य में विलय के बाद, उनके बेटे दलीप सिंह को भी इंग्लैंड भेज दिया गया और उन्हें ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया गया।
### निर्वासन और मृत्यु
महारानी जिंद कौर ने लगभग 13 वर्षों तक नेपाल में निर्वासन में जीवन व्यतीत किया। इस दौरान, उन्होंने अपने बेटे के साथ फिर से जुड़ने और उन्हें उनकी विरासत की याद दिलाने के लिए लगातार प्रयास किए। अंततः, 1861 में उन्हें अपने बेटे से कलकत्ता में मिलने की अनुमति दी गई।
अपने बेटे के साथ पुनर्मिलन के बाद, वह उनके साथ इंग्लैंड चली गईं। हालाँकि, निर्वासन के कष्टों और अपने राज्य को खोने के दुःख ने उनके स्वास्थ्य पर गहरा असर डाला था। 1 अगस्त 1863 को लंदन में उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार इंग्लैंड में किया गया और बाद में उनकी अस्थियों को नासिक, महाराष्ट्र में गोदावरी नदी के किनारे बने उनके पति के स्मारक के पास दफनाया गया।
महारानी जिंद कौर को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ उनके साहस, दृढ़ संकल्प और अटूट प्रतिरोध के लिए याद किया जाता है। वह सिख इतिहास में एक प्रेरणादायक शख्सियत बनी हुई हैं, जो पंजाब की संप्रभुता के लिए लड़ने वाली एक शक्तिशाली रानी का प्रतीक हैं।
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