एक भारतीय राजा जिसने राजगद्दी पर बैठकर अंग्रेजों को उनकी औकात दिखाई | सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय, An Indian king who insulted british on the throne | Sayajirao Gaekwad III
निश्चित रूप से, महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय के बारे में विस्तृत जानकारी यहाँ प्रस्तुत है।
**महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (1875-1939)**, बड़ौदा रियासत के एक दूरदर्शी और सुधारवादी शासक थे। उन्हें भारत के इतिहास में सबसे प्रगतिशील और प्रभावशाली शासकों में से एक माना जाता है, जिन्होंने अपनी रियासत को आधुनिक बनाने और अपने लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए अभूतपूर्व कार्य किए। उन्हें **"आधुनिक बड़ौदा का निर्माता"** भी कहा जाता है।
### **प्रारंभिक जीवन और राज्यारोहण**
सयाजीराव का मूल नाम गोपालराव गायकवाड़ था और उनका जन्म 11 मार्च, 1863 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के कवलना गाँव में एक सामान्य मराठा किसान परिवार में हुआ था।
1875 में, बड़ौदा के तत्कालीन महाराजा मल्हारराव गायकवाड़ को ब्रिटिश सरकार ने कुशासन के आरोप में पद से हटा दिया। उनकी कोई संतान न होने के कारण, उनकी विधवा पत्नी, महारानी जमनाबाई ने उत्तराधिकारी के रूप में गायकवाड़ वंश के किसी योग्य लड़के को गोद लेने का निर्णय लिया। दूर-दराज के गांवों से लाए गए कई लड़कों में से, बारह वर्षीय गोपालराव को उनकी बुद्धिमत्ता और तेज-तर्रार जवाबों के कारण चुना गया। उन्हें **सयाजीराव** नाम दिया गया और 27 मई, 1875 को बड़ौदा की गद्दी पर बैठाया गया।
### **प्रमुख सुधार और योगदान**
सयाजीराव ने वयस्क होने पर 1881 में पूर्ण शासनाधिकार प्राप्त किया और इसके बाद उन्होंने सुधारों की एक श्रृंखला शुरू की, जिसने बड़ौदा का कायाकल्प कर दिया।
#### **शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति** 🎓
* **अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा:** सयाजीराव का सबसे क्रांतिकारी कदम 1906 में अपनी पूरी रियासत में 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए **अनिवार्य और निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा** लागू करना था। ऐसा करने वाली बड़ौदा भारत की पहली रियासत थी। इसकी शुरुआत उन्होंने 1893 में अमरेली तालुका से की थी।
* **पुस्तकालय आंदोलन:** उन्होंने ज्ञान के प्रसार के लिए पूरे राज्य में पुस्तकालयों का एक विशाल नेटवर्क स्थापित किया। उनका मानना था कि शिक्षा केवल स्कूलों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। उन्होंने बड़ौदा में एक केंद्रीय पुस्तकालय की स्थापना की और दूर-दराज के गांवों तक किताबें पहुँचाने के लिए चलती-फिरती लाइब्रेरियां (Mobile Libraries) भी शुरू कीं।
* **उच्च शिक्षा:** उन्होंने कला, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की शिक्षा को बढ़ावा दिया। आज वडोदरा में स्थित प्रसिद्ध **महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय (MSU)** की नींव उनके द्वारा स्थापित बड़ौदा कॉलेज से ही पड़ी थी।
#### **सामाजिक सुधार** 🧑🤝🧑
* **जातिवाद का विरोध:** उन्होंने दलितों और पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण कानून बनाए। उन्होंने छुआछूत जैसी कुप्रथाओं को समाप्त करने का प्रयास किया और सभी के लिए स्कूल और सार्वजनिक स्थान खोले।
* **बाल विवाह पर रोक:** उन्होंने अपनी रियासत में बाल विवाह को रोकने के लिए कानून बनाया।
* **विधवा पुनर्विवाह:** उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता दी और उनकी स्थिति सुधारने के लिए कई कदम उठाए।
* **महिला शिक्षा:** उन्होंने लड़कियों की शिक्षा पर विशेष जोर दिया और उनके लिए कई स्कूल और कॉलेज खोले।
#### **आर्थिक और प्रशासनिक सुधार** 🏛️
* **बैंकिंग:** उन्होंने 1908 में **बैंक ऑफ़ बड़ौदा** की स्थापना की, जो आज भारत के प्रमुख राष्ट्रीयकृत बैंकों में से एक है। इसका उद्देश्य लोगों को साहूकारों के चंगुल से बचाना और व्यापार को बढ़ावा देना था।
* **औद्योगिकीकरण:** उन्होंने कपड़ा मिलों, चीनी कारखानों और रेलवे के निर्माण को प्रोत्साहित करके अपनी रियासत के औद्योगिकीकरण की नींव रखी।
* **न्यायपालिका:** उन्होंने न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग किया, ताकि न्याय निष्पक्ष रूप से हो सके।
* **ग्राम पंचायत:** उन्होंने स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने के लिए ग्राम पंचायतों को अधिक अधिकार दिए।
### **डॉ. बी.आर. अंबेडकर के संरक्षक**
महाराजा सयाजीराव प्रतिभा के सच्चे पारखी थे। उन्होंने युवा भीमराव अंबेडकर की असाधारण प्रतिभा को पहचाना और उनकी शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने ही डॉ. अंबेडकर को 1913 में संयुक्त राज्य अमेरिका के **कोलंबिया विश्वविद्यालय** में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की। बाद में उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में भी उनकी पढ़ाई का खर्च उठाया। यह सयाजीराव का ही समर्थन था जिसने डॉ. अंबेडकर को भारतीय संविधान के निर्माता बनने की राह पर अग्रसर किया।
### **विरासत**
6 फरवरी, 1939 को मुंबई में उनका निधन हो गया। महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय का 63 वर्षों का लंबा शासनकाल बड़ौदा के लिए स्वर्ण युग साबित हुआ। वह केवल एक राजा नहीं, बल्कि एक सच्चे राजनेता और समाज सुधारक थे, जिनकी दृष्टि समय से बहुत आगे थी। शिक्षा, सामाजिक समानता और आर्थिक प्रगति पर उनका जोर आज भी प्रासंगिक है और उन्हें भारतीय इतिहास में एक अमर स्थान प्रदान करता है।
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