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महाराज गोविंद चंद्र का इतिहास जिन्होंने 50 साल तक तुर्कों को भारत में घुसने नहीं दिया, History of Maharaj Govind Chandra who did not allow Turks to enter India for 50 years,

महाराज गोविंद चंद्र का इतिहास जिन्होंने 50 साल तक तुर्कों को भारत में घुसने नहीं दिया, History of Maharaj Govind Chandra who did not allow Turks to enter India for 50 years,



### महाराजा गोविंदचंद्र: गहड़वाल वंश के सबसे प्रतापी शासक

महाराजा गोविंदचंद्र (शासनकाल: लगभग 1114-1155 ई.) गहड़वाल वंश के सबसे शक्तिशाली और यशस्वी राजा थे। उन्होंने न केवल अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया, बल्कि कला, संस्कृति और धर्म को भी महत्वपूर्ण संरक्षण प्रदान किया। उनके शासनकाल में गहड़वाल वंश अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया और कन्नौज ने एक बार फिर अपनी पुरानी प्रतिष्ठा प्राप्त की।

**प्रारंभिक जीवन और राज्यारोहण**

गोविंदचंद्र, गहड़वाल शासक मदनचंद्र के पुत्र थे। एक राजकुमार के रूप में भी उन्होंने अपनी वीरता और राजनीतिक कौशल का परिचय दिया था। उन्होंने अपने पिता के शासनकाल में ही गजनवी तुर्कों के आक्रमणों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया था। मदनचंद्र के बाद, लगभग 1114 ई. में गोविंदचंद्र ने कन्नौज के सिंहासन पर अपना अधिकार स्थापित किया।

**सैन्य विजय और साम्राज्य विस्तार**

गोविंदचंद्र एक महत्वाकांक्षी और कुशल सेनापति थे। उन्होंने अपने पराक्रम से गहड़वाल राज्य को एक विशाल साम्राज्य में बदल दिया।

* **तुर्कों से संघर्ष:** अपने शासनकाल की शुरुआत से ही गोविंदचंद्र ने उत्तर-पश्चिम से होने वाले तुर्की आक्रमणों का दृढ़ता से सामना किया। उन्होंने मुस्लिम आक्रांताओं से वाराणसी जैसे पवित्र हिंदू केंद्रों की रक्षा की और उन्हें मध्य भारत में आगे बढ़ने से रोके रखा। उनके अभिलेखों में उन्हें "तुर्कों के विरुद्ध बार-बार विजय प्राप्त करने वाला" कहा गया है।

* **पालों पर विजय:** पूर्व में, उन्होंने बंगाल और बिहार के पाल शासकों पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उन्होंने पाल शासक मदनपाल को पराजित कर मगध (दक्षिणी बिहार) के एक बड़े हिस्से, जिसमें मुंगेर भी शामिल था, पर अधिकार कर लिया।

* **कलचुरियों का दमन:** उन्होंने त्रिपुरी के कलचुरि शासकों की शक्ति को भी चुनौती दी और उनके कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया।

* **अन्य विजयें:** इसके अलावा, उन्होंने चंदेलों और राष्ट्रकूटों के साथ भी युद्ध किए और अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार किया। उनके राज्य की सीमाएँ आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार के अधिकांश हिस्सों तक फैली हुई थीं।

**प्रशासन और सांस्कृतिक संरक्षण**

गोविंदचंद्र न केवल एक महान विजेता थे, बल्कि एक कुशल प्रशासक और कला-संस्कृति के संरक्षक भी थे।

* **सुदृढ़ प्रशासन:** उन्होंने एक सुव्यवस्थित प्रशासनिक तंत्र की स्थापना की। उनके मंत्री लक्ष्मीधर, जो स्वयं शास्त्रों के प्रकांड विद्वान थे, ने 'कृत्यकल्पतरु' नामक एक विशाल ग्रंथ की रचना की, जिसमें राजनीति, कानून और प्रशासन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।

* **साहित्य को प्रोत्साहन:** गोविंदचंद्र स्वयं एक विद्वान थे और उन्होंने विद्वानों को अपने दरबार में आश्रय दिया। उनके शासनकाल में संस्कृत साहित्य की उन्नति हुई।

* **धार्मिक सहिष्णुता:** यद्यपि वे स्वयं एक धर्मनिष्ठ शैव (भगवान शिव के उपासक) थे, उन्होंने अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णुता और सम्मान की नीति अपनाई। उनकी एक रानी, कुमारदेवी, एक बौद्ध थीं और उन्होंने सारनाथ में 'धर्मचक्र-जिन-विहार' नामक एक बौद्ध मठ का निर्माण करवाया था। गोविंदचंद्र ने स्वयं भी बौद्ध मठों को दान दिया था।

**विरासत**

महाराजा गोविंदचंद्र का शासनकाल गहड़वाल वंश के लिए स्वर्ण युग माना जाता है। उन्होंने अपनी सैन्य शक्ति से राज्य को सुरक्षित और विस्तृत किया तथा अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक नीतियों से समाज में समृद्धि और स्थिरता को बढ़ावा दिया। कन्नौज को उन्होंने जो गौरव प्रदान किया, वह उनके उत्तराधिकारियों के समय तक कायम रहा। उन्हें मध्यकालीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण शासकों में गिना जाता है, जिन्होंने सफलतापूर्वक विदेशी आक्रमणों का प्रतिरोध किया और भारतीय संस्कृति की रक्षा की।

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