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तानाजी और छिपकली यशवंती के बलिदान की कहानी, The story of Tanaji and the sacrifice of the lizard Yashwanti,

तानाजी और छिपकली यशवंती के बलिदान की कहानी, The story of Tanaji and the sacrifice of the lizard Yashwanti,



तानाजी मालुसरे की "छिपकली यशवंती" मराठा इतिहास की एक रोमांचक और प्रेरणादायक घटना से जुड़ी है। यह कहानी **सिंहगढ़ किले** (जिसे पहले कोंढाणा कहा जाता था) के पुनः विजय अभियान से जुड़ी हुई है। आइए विस्तार से जानते हैं:

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### 🔶 पृष्ठभूमि:

1665 में औरंगज़ेब के साथ संधि के तहत शिवाजी महाराज को कोंढाणा किला मुगलों को देना पड़ा था। बाद में शिवाजी महाराज ने इस किले को पुनः जीतने का निर्णय लिया और यह जिम्मेदारी अपने परम मित्र और वीर सरदार **तानाजी मालुसरे** को दी।

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### 🔶 किला जीतने की योजना:

कोंढाणा एक बेहद दुर्गम किला था, जिसकी चढ़ाई बहुत कठिन थी। मुगलों ने इसकी सुरक्षा बहुत सख्ती से की थी। ऐसे में तानाजी को एक ऐसा तरीका खोजना था जिससे वे चुपचाप किले पर चढ़ सकें।

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### 🦎 **छिपकली 'यशवंती' का उपयोग:**

तानाजी ने एक **विशेष प्रशिक्षित मॉनिटर लिज़र्ड (घोणस या गोह)** का इस्तेमाल किया, जिसे वे "यशवंती" कहते थे।

**इस छिपकली की विशेषताएँ:**

* यशवंती को रस्सी बांधकर किले की दीवारों पर चढ़ाया जाता था।
* वह अपने मजबूत पंजों से दीवार पर चढ़ जाती और रस्सी को ऊपर ले जाकर किसी मजबूत स्थान पर जकड़ देती।
* फिर तानाजी और उनके सैनिक उसी रस्सी के सहारे चुपचाप दीवार पर चढ़ते थे।

**ऐसा माना जाता है कि** यह यशवंती इतनी प्रशिक्षित और भरोसेमंद थी कि तानाजी ने उसी की मदद से सबसे कठिन पहर वाली दिशा से किले पर चढ़ाई की थी।

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### 🔶 परिणाम:

* तानाजी और उनके सैनिकों ने वीरता से लड़ते हुए किले को जीत लिया।
* हालांकि इस युद्ध में तानाजी वीरगति को प्राप्त हुए।
* बाद में शिवाजी महाराज ने कहा था:
  **"गढ़ आला पण सिंह गेला"**
  (किला तो आया, लेकिन शेर चला गया।)

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### 📜 ऐतिहासिक सच्चाई:

हालांकि यशवंती की कहानी लोककथाओं और मराठी परंपराओं में गहराई से बसी हुई है, और यह वीरता का प्रतीक बन चुकी है, कुछ इतिहासकार इसे **आंशिक रूप से मिथकीय** मानते हैं। लेकिन मराठी लोककथाओं और कई ऐतिहासिक ग्रंथों में इसका ज़िक्र मिलता है।

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