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महाराणा प्रताप के हाथी रामप्रसाद की अद्भुत कहानी, The amazing story of Maharana Pratap's elephant Ramprasad

महाराणा प्रताप के हाथी रामप्रसाद की अद्भुत कहानी, The amazing story of Maharana Pratap's elephant Ramprasad



### **महाराणा प्रताप का स्वामीभक्त हाथी रामप्रसाद: वीरता और अटूट निष्ठा की एक अनूठी गाथा**

भारतीय इतिहास में जब भी वीरता, स्वाभिमान और त्याग की बात होती है, तो महाराणा प्रताप का नाम अग्रिम पंक्ति में लिया जाता है। उनके अदम्य साहस और स्वतंत्रता प्रेम की कहानियों से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। लेकिन इस गाथा में केवल महाराणा ही नहीं, उनके सहयोगियों का भी अविस्मरणीय योगदान रहा है, जिनमें उनके प्रिय घोड़े चेतक के साथ-साथ उनके गजराज 'रामप्रसाद' का नाम भी स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। रामप्रसाद न केवल एक शक्तिशाली हाथी था, बल्कि वह अपनी स्वामीभक्ति और अटूट निष्ठा का एक ऐसा प्रतीक है, जिसकी कहानी आज भी प्रेरणा देती है।

**अद्भुत शक्ति और युद्ध कौशल का धनी**

रामप्रसाद कोई साधारण हाथी नहीं था। वह मेवाड़ की सेना का एक प्रशिक्षित और अत्यंत शक्तिशाली गजराज था। कहा जाता है कि वह इतना बलशाली था कि युद्ध के मैदान में अकेले ही दुश्मनों के कई हाथियों पर भारी पड़ता था। उसकी चिंघाड़ से शत्रु सेना में खलबली मच जाती थी और उसकी सूंड में बंधी तलवार जब चलती तो दुश्मन के हाथी और घोड़े गाजर-मूली की तरह कट जाते थे।

**हल्दीघाटी के युद्ध में रामप्रसाद का पराक्रम**

18 जून, 1576 को लड़े गए प्रसिद्ध हल्दीघाटी के युद्ध में रामप्रसाद ने अभूतपूर्व वीरता का प्रदर्शन किया था। मुगल इतिहासकार अल-बदायूंनी, जो स्वयं इस युद्ध में मौजूद थे, ने अपने ग्रंथ 'मुंतखब-उत-तवारीख' में रामप्रसाद के पराक्रम का विस्तृत वर्णन किया है। बदायूंनी लिखता है कि युद्ध के दौरान मुगल सेना में महाराणा प्रताप और उनके हाथी रामप्रसाद को पकड़ने की विशेष योजना बनाई गई थी।

युद्ध के मैदान में रामप्रसाद ने मुगल सेना में भारी तबाही मचाई। उसने अकेले ही अकबर के कई शक्तिशाली हाथियों को मार गिराया और कई सैनिकों को अपनी सूंड से उठाकर पटक दिया। उसके इस रौद्र रूप को देखकर मुगल सेना में भगदड़ मच गई थी। रामप्रसाद के महावत के मारे जाने के बाद भी वह बिना किसी नियंत्रण के मुगलों पर कहर बरपाता रहा।

**रामप्रसाद की गिरफ्तारी और अटूट स्वामीभक्ति**

रामप्रसाद के असाधारण पराक्रम को देखकर मुगल सेनापति मानसिंह ने उसे किसी भी कीमत पर जीवित पकड़ने का आदेश दिया। इसके लिए सात सबसे शक्तिशाली मुगल हाथियों का एक चक्रव्यूह बनाया गया, जिन पर 14 महावत सवार थे। इस चक्रव्यूह में घेरकर ही रामप्रसाद को बड़ी मुश्किल से पकड़ा जा सका।

रामप्रसाद को पकड़कर अकबर के समक्ष पेश किया गया। अकबर उसकी कद-काठी और वीरता से बहुत प्रभावित हुआ। उसने रामप्रसाद का नाम बदलकर 'पीरप्रसाद' रखा और उसे शाही हाथियों में शामिल करने का आदेश दिया। अकबर ने उसे उत्तम भोजन, गन्ना और पानी देने का हुक्म दिया, लेकिन स्वामीभक्त रामप्रसाद ने मुगलों का एक दाना भी ग्रहण नहीं किया।

अपने स्वामी महाराणा प्रताप से बिछड़ने के वियोग और गुलामी को अस्वीकार करते हुए रामप्रसाद ने अन्न-जल का त्याग कर दिया। उसने 18 दिनों तक कुछ नहीं खाया-पिया और अंततः अपने प्राण त्याग दिए।

**एक जानवर की निष्ठा जिसने अकबर को भी झुका दिया**

एक जानवर की अपने स्वामी के प्रति ऐसी अटूट निष्ठा और स्वाभिमान देखकर अकबर भी चकित रह गया। कहा जाता है कि रामप्रसाद की मृत्यु पर अकबर ने कहा था, "जिसके हाथी को मैं अपने सामने नहीं झुका पाया, उस महाराणा प्रताप को मैं क्या झुका पाऊंगा।"

रामप्रसाद की यह कहानी केवल एक जानवर की कहानी नहीं है, बल्कि यह स्वाभिमान, निष्ठा और स्वतंत्रता के प्रति अटूट प्रेम का प्रतीक है। यह दर्शाती है कि मेवाड़ की मिट्टी में केवल इंसान ही नहीं, बल्कि जानवर भी अपनी आजादी और अपने स्वामी के लिए प्राण न्योछावर करने को तत्पर रहते थे। चेतक की तरह ही रामप्रसाद का बलिदान भी महाराणा प्रताप के संघर्ष की गाथा का एक अभिन्न और गौरवशाली अध्याय है।

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