मानगढ़ जनसंहार का वो काला दिन जब 1507 भील आदिवासियों का कत्ल अंग्रेजो ने कर दिया, That dark day of Mangarh massacre when 1507 Bhil tribals were killed by the British
### मानगढ़ जनसंहार: 'आदिवासी जलियाँवाला' की गाथा
मानगढ़ जनसंहार, भारतीय इतिहास की एक अत्यंत दुखद और महत्वपूर्ण घटना है, जिसे अक्सर **'आदिवासी जलियाँवाला बाग'** के नाम से जाना जाता है। यह क्रूर हत्याकांड 17 नवंबर, 1913 को राजस्थान और गुजरात की सीमा पर स्थित मानगढ़ की पहाड़ी पर हुआ था। इस दिन, ब्रिटिश सेना और स्थानीय रियासतों की फौजों ने मिलकर समाज सुधारक गोविंद गुरु के नेतृत्व में एकत्रित हुए हजारों भील आदिवासियों पर अंधाधुंध गोलियाँ बरसाई थीं, जिसमें लगभग 1500 से अधिक लोगों की शहादत हुई थी।
यह घटना अमृतसर के जलियाँवाला बाग हत्याकांड (1919) से भी छह साल पहले हुई थी, लेकिन लंबे समय तक इतिहास के पन्नों में इसे वह स्थान नहीं मिला, जिसकी यह हकदार थी।
#### घटना की पृष्ठभूमि और कारण
मानगढ़ जनसंहार की जड़ें गोविंद गुरु द्वारा चलाए गए 'भगत आंदोलन' में थीं।
* **गोविंद गुरु और भगत आंदोलन:** गोविंद गुरु (जन्म 1858) एक प्रभावशाली समाज सुधारक और आध्यात्मिक नेता थे। उन्होंने भील और गरासिया जनजातियों के बीच व्याप्त सामाजिक कुरीतियों (जैसे शराबखोरी, अंधविश्वास) को खत्म करने और उन्हें नैतिक तथा आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाने के लिए **'भगत आंदोलन'** चलाया। उन्होंने 'सम्प सभा' की स्थापना की और अनुयायियों को एकेश्वरवाद, शाकाहार, स्वच्छता और सादा जीवन जीने का उपदेश दिया।
* **आदिवासियों का शोषण:** उस समय भील आदिवासी समुदाय, स्थानीय रजवाड़ों (बांसवाड़ा, डूंगरपुर, संतरामपुर) और ब्रिटिश सरकार के तिहरे शोषण का शिकार था। उनसे भारी लगान वसूला जाता था, बेगार (बंधुआ मजदूरी) करवाई जाती थी और वन संपदा पर उनके पारंपरिक अधिकारों को छीना जा रहा था।
* **मानगढ़ पहाड़ी पर सभा:** गोविंद गुरु ने इन अन्यायों के विरुद्ध आदिवासियों को एकजुट किया। उन्होंने अपनी मांगों को लेकर ब्रिटिश और रियासती हुकूमतों पर दबाव बनाना शुरू किया। अपनी गतिविधियों का केंद्र उन्होंने मानगढ़ पहाड़ी को बनाया और वहां एक धूणी (पवित्र अग्नि) स्थापित की। 17 नवंबर, 1913 (मार्गशीर्ष पूर्णिमा) को हजारों भील अनुयायी अपने गुरु के साथ हवन करने और अपनी समस्याओं पर विचार-विमर्श करने के लिए पहाड़ी पर एकत्रित हुए।
#### 17 नवंबर, 1913 की क्रूर घटना
हजारों आदिवासियों के इस शांतिपूर्ण जमावड़े को स्थानीय रजवाड़ों और ब्रिटिश हुकूमत ने अपने शासन के लिए एक बड़े खतरे के रूप में देखा। उन्हें डर था कि गोविंद गुरु के नेतृत्व में भील अपनी स्वतंत्र 'भील राज' की स्थापना कर सकते हैं।
* **घेराबंदी:** ब्रिटिश कर्नल शटन के नेतृत्व में मेवाड़ भील कोर, वेलेजली राइफल्स और अन्य रियासतों की संयुक्त सेनाओं ने मानगढ़ पहाड़ी को चारों ओर से घेर लिया।
* **गोलीबारी का आदेश:** उन्होंने भीलों को पहाड़ी खाली करने की चेतावनी दी, लेकिन जब वे नहीं हटे, तो सेना को गोलियाँ चलाने का आदेश दे दिया गया।
* **नरसंहार:** आधुनिक हथियारों जैसे मशीनगनों और तोपों से निहत्थे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की भीड़ पर अंधाधुंध गोलीबारी की गई। पहाड़ी पर लाशों का ढेर लग गया और पूरी पहाड़ी निर्दोष आदिवासियों के खून से लाल हो गई।
#### परिणाम और हताहत
* सरकारी ब्रिटिश आंकड़ों में मरने वालों की संख्या बहुत कम (लगभग 100) बताई गई, लेकिन स्थानीय लोगों, मौखिक इतिहास और शोधकर्ताओं के अनुसार, इस नरसंहार में **1500 से अधिक** भील आदिवासी शहीद हुए थे।
* गोविंद गुरु को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें पहले फाँसी और बाद में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई। कुछ वर्षों बाद उन्हें रिहा कर दिया गया, लेकिन उनके अपने क्षेत्र में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 1931 में गुजरात के कंबोई गांव में उनका निधन हो गया।
#### ऐतिहासिक महत्व और वर्तमान स्थिति
* **स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:** मानगढ़ जनसंहार भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी प्रतिरोध का एक गौरवशाली, लेकिन दर्दनाक अध्याय है। यह दर्शाता है कि कैसे दूर-दराज के आदिवासी समुदायों ने भी ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ बहादुरी से संघर्ष किया था।
* **राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा:** दशकों तक गुमनाम रहने के बाद, अब इस ऐतिहासिक स्थल को पहचान मिल रही है। भारत सरकार ने हाल ही में **मानगढ़ धाम** को एक **राष्ट्रीय स्मारक** घोषित किया है, ताकि इन शहीद आदिवासियों के बलिदान को हमेशा याद रखा जा सके।
* **श्रद्धांजलि:** आज भी हर साल मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर हजारों लोग मानगढ़ धाम में एकत्रित होकर उन शहीदों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। यह स्थान अब गोविंद गुरु के अनुयायियों और देशभक्तों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल बन गया है।
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