उत्तराधिकारी रिश्ते से नहीं योग्यता से
चुना जाता है शौर्य के लिए है
की तीव्रता के लिए
और न्याय के लिए अ
कि पृथ्वीराज चौहान का दिल्ली के सिंहासन
पर राज्याभिषेक किया जाता है
है
वर्षों तक मुगलों की नकली कहानियां गढ़ने
वाले मुंबई फिल्म उद्योग का नशा धीरे-धीरे
ही सही उतर रहा है पहली बार भारत के असली
हीरो की कहानियां बड़े पर्दे पर आ रही हैं
यदि अब कोई अश्लील अर्ध धूर्तता नहीं की
गई तो भारत की नई पीढ़ी पहली बार उन वीरों
की सच्ची कहानी जान पाएगी जिन्होंने इस
देश को बनाया और बचाया
कि फिल्मों से लेकर स्कूली पुस्तकों तक
में अब तक हमें यही बताया जाता रहा कि हम
हमेशा हारते रहे जिन्होंने युद्ध में हमें
जीता और रौंदा वह कल लायक नहीं बल्कि
हमारे नायक थे
सोचिए कि हमारे पूर्वज युद्ध हार ही रहे
तो हम बारह सौ वर्षो से जीवित कैसे हैं हम
बारह सौ वर्षो से एक हिंदू कैसे बने हुए
हैं हमारे पूर्वजों की भूमि की चौहद्दी
बहुत कुछ कमाकर भी गाया हुआ ऐसी ही क्यों
है और उसी जो हल्दी को पुनः प्राप्त करने
के लिए हम आज भी प्रतिबद्ध क्यों है
वर्ष 1947 में मिली कथित स्वतंत्रता के
बाद भी हमारे मन मस्तिष्क में यह बात
बैठाई जाती रही कि राजपूतों ने लड़ाइयां
लड़ी लेकिन व्यावहारिक उधार थे
कि वे कभी अलाउद्दीन से हारे कभी बाबर से
हारे कभी अकबर से तो कभी औरंगजेब से
क्या वास्तव में ऐसा ही हुआ
हम पृथ्वी राज चौहान महाराणा प्रताप जैसे
योद्धाओं को महान तो कहते हैं लेकिन हमें
उनकी हार की कहानियां ही पता है महाराणा
प्रताप के बारे में ऐसी पंक्तियां गर्व के
साथ सुनाई जाती है जीत-हार की बात न कर यह
संघर्षों पर ध्यान करो एक कुछ लोग जीत कर
भी हार जाते हैं कुछ हार कर भी जीत जाते
हैं
सच यह है कि हमें वह इतिहास पढ़ाया जाता
है जिनमें हम हारे हैं ताकि एक समाज के
रूप में हमारा मनोबल तोड़ा जा सके कि
कुकृत्य किसने किया कहने की आवश्यकता नहीं
है
सम्राट पृथ्वीराज चौहान की बात आती है तो
हमें बताया जाता है कि तराइन के दूसरे
युद्ध में मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज
चौहान को हराया था लेकिन वहीं का अंतिम
युद्ध था है उससे पहले ही वृद्धों की
कहानियां कहां और किसने छिपा दिए
मेवाड़ के राणा सांगा ने सौ से अधिक युद्ध
लड़े जिसमें मात्र एक युद्ध में वे पराजित
हुए हमारे इतिहास की पुस्तकें उसी यह
युद्ध की कहानियां सुनाती है उस युद्ध से
राणा सांगा का इतिहास शुरू होता है और उसी
पर समाप्त हो जाता है
राणा सांगा द्वारा लड़े गए खंडार अहमदनगर
बाड़ी गागरोन बाय आना इधर खतौली जैसे
गुणों के बारे में हमारी नई पीढ़ी हैं कुछ
नहीं जानते हैं अगर किसी को कुछ पता भी हो
तो उतना नहीं जितना वह खानवा के युद्ध के
बारे में बता सकता है
कि खतौली के युद्ध में राणा सांगा ने अपना
एक हाथ और एक पांव गंवाकर भी इब्राहिम
लोदी को दिल्ली तक खदेड़ा था लेकिन वह
मायने नहीं रखता
भयानक युद्ध में बाबर का कायरों की तरह
भागने भी कौन हो गया कहानी केवल और केवल
खानवा के युद्ध की जिसमें मुगल लुटेरे
बाबर ने राणा सांगा को पराजित किया था
महाराणा प्रताप का नाम आता है तो सबसे
पहले हल्दीघाटी की बात होती है इस युद्ध
के परिणामों पर हमेशा से विवाद रहा है यह
कैसा युद्ध था जो अनिर्णित मारा जाता था
लेकिन वर्षों तक हमें बताया गया यह युद्ध
में राणा की हार हो गई लेकिन इससे पहले
महाराणा प्रताप ने गोगुंदा चावल डेमों ही
मदारिया कुंभलगढ़ लीडर मांडल और दिवेर
जैसे कुल इक्कीस बड़ा युद्ध जीते 300 से
अधिक मुगल छावनियों को ध्वस्त किया
कि महाराणा प्रताप के समय मेवाड़ में लगभग
50 प्रोव थे लेकिन सभी प्रमुख दलों का
अधिकार हो चुका था 26 दूसरों के नाम बदलकर
मुस्लिम नाम रखे गए उदयपुर मोहम्मदाबाद और
चित्तौड़गढ़ अकबराबाद बन चुका था फिर आज
कैसे उदयपुर हम उदयपुर के नाम से ही जानते
हैं यह हमें कोई नहीं बताता
50 में से दो दूर छोड़कर शेष सभी पर
महाराणा प्रताप ने विजय प्राप्त की थी और
लगभग संपूर्ण मेवाड़ पर दोबारा अधिकार
किया है लेकिन हमें तो सिर्फ हल्दीघाटी
युद्ध का इतिहास पढ़ाना है बाकी वृद्धि तो
सब गुण हैं इसके आगे
राणा अमरसिंह ने मुगल लुटेरे जहांगीर से
17 बड़े युद्ध लड़े उसकी सौ से अधिक
झांकियां प्रस्तुत किए लेकिन हमें पढ़ाया
जाता है कि वर्ष 1615 में महाराणा अमर
सिंह ने मुगलों से संधि कर ली थी वर्ष
1597 से 1615 के बीच का पूरा इतिहास
पुस्तकों से लुप्त है कि
महाराणा कुंभा ने 32 लुभाए ढेरों ग्रंथ
लिखे विजय स्तंभ बनवाया यह हम जानते हैं
पर क्या आप उनके द्वारा लड़े गए गिनती के
चार पांच पुत्रों के नाम भी बता सकते हैं
महाराणा कुंभा ने सौ से अधिक युद्ध लड़े
और अपने पूरे जीवन में किसी भी युद्ध में
पराजित नहीं हुए
चित्तौड़गढ़ की कहानियां आती है तो हमें
बताया जाता है अलाउद्दीन खिलजी ने रक्त
रावल रतन सिंह को पराजित किया
बहादुरशाह निर्णय विक्रमादित्य के समय
चित्तौड़गढ़ दुर्ग जीता था
कि अकबर में महाराणा उदय सिंह को पराजित
कर दुर्ग पर अधिकार किया है कि क्या इन
युद्धों के अतिरिक्त चित्तौड़गढ़ पर कभी
कोई हमला नहीं हुआ
कि आज बहुत सारे भारतीय विमान चुके हैं कि
राजपूतों ने सही रणनीति नहीं अपनाई हमेशा
खराब हथियारों का प्रयोग किया हमेशा आपस
में लड़ते रहे इसलिए वे बार-बार हाजिर है
आधुनिक इन शब्दों में समझें तो उन्हीं
हथियारों से हमने अनगिनत युद्ध जीते
मातृभूमि का लहू से अभिषेक किया सैकड़ों
वर्षों तक अपने विदेशी शत्रुओं की आग
उगलती तोपों का अपनी तलवारों से सामना
किया है हां वह रे लेकिन शत्रुओं के हाथों
नहीं बल्कि उन्हीं कृ तकृ भारतीयों से
जिन्हें आज हम कांग्रेसी और वामपंथी के
नाम से जानते हैं।
0 Comments