थे
मदर था बारह नवंबर 1948 टोक्यो के बाहरी
इलाके में एक मुकदमे की सुनवाई चल रही थी
द्वितीय विश्व युद्ध में हार के बाद जापान
के तत्कालीन प्रधानमंत्री तो जो समय कुल
55 युद्ध बंदियों पर यह मुकदमा चलाया गया
था विश्व के इतिहास में से टोक्यो ट्रायल
के नाम से जानते हैं
आरोपियों में से 28 लोगों को क्लास 12
युद्ध अपराधी माना गया आरोप सिद्ध होने पर
उनके लिए एक मात्र सजा थी मृत्युदंड दे कि
विश्व भर से आए 11 अंतरराष्ट्रीय
न्यायविदों ने अपना फैसला सुनाना शुरू
किया सभी ने एक मत से 28 आरोपियों को दोषी
करार दिया सिर्फ एक जज ने कहा कि यह लोग
दूसरी नहीं है उस निर्णय के बाद पूरी
अदालत में सन्नाटा छा गया किसी ने उम्मीद
नहीं की थी कि कोई जज विपरीत निर्णय भी दे
सकता है पर निर्णय सुनाने वाले न्यायाधीश
थे राधा विनोद पाल टोक्यो ट्रायल में
मौजूद एक मात्र भारतीय
वर्ष 1886 में पूर्वी बंगाल के कुंभ में
राधा विनोद कौल का जन्म हुआ था उनकी मां
ने घर और गाय की देखभाल करके जीवन व्यापन
किया है
हैं पालक राधाविनोद गांव के प्राथमिक
विद्यालय के पास ही गाय चराने ले जाया
करते थे जब स्कूल में पढ़ाते थे तो राधा
विनोद पाल बाहर से सुनते रहते थे एक दिन
स्कूल स्टेटस शहर से स्कूल का दौरा करने
आए उन्होंने कक्षा में प्रवेश करने के बाद
छात्रों से कुछ प्रश्न पूछे सबूत चिट्ठी
राधा विनोद कौल ने कक्षा की खिड़की के
बाहर से आवाज दी मुझे आपके सभी प्रश्नों
के उत्तर पता है और उसने एक एक करके सभी
सवालों के जवाब दे दिए हर कोई यह जानकर
हैरान रह गया खिड़की के बाहर से झांकने
वाला एक बच्चा इतना प्रतिभाशाली था इसके
बाद राधा विनोद कौल को स्कूल में एडमिशन
मिल गया और वह बाकी बच्चों के साथ बैठकर
पढ़ने लगे राधा विनोद कौल ने स्कूल की
पढ़ाई सबसे अधिक अंकों से पास की इसके बाद
वे कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में चले
गए यहां गणित की पढ़ाई के बाद उन्होंने
कोलकाता विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई
की है है क्योंकि ट्रायल में राधा विनोद
पाल ने जो निर्णय सुनाया उसकी मिसाल आज भी
पूरे विश्व में दी जाती है उन्होंने लिखा
कि विश्व युद्ध के विजेता मित्र देशों ने
संयम और तटस्थता के सिद्धांतों का उल्लंघन
किया है जापान ने आत्मसमर्पण के संकेत दिए
थे लेकिन उसे अनदेखा करके परमाणु बम
गिराया गया जिससे लाखों निर्दोष लोगों की
मृत्यु हुई
राधा विनोद पाल द्वारा लिखे गए 1232 पृष्ठ
के निर्णय का परिणाम हुआ कि कई अभियुक्तों
को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा
कि जापान में आज भी राधा विनोद पाल का
बहुत सम्मान किया जाता है वर्ष 1966 में
सम्राट हिरोहितो ने उन्हें जापान का
सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी दिया टोक्यो और
छोटे शहरों में को व्यस्त सड़कें उनके नाम
पर हैं जापान के विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम
में राधा विनोद कौल के निर्णय को प्रमुखता
से पढ़ाया जाता है तो क्योंकि सुप्रीम
कोर्ट के सामने उनकी प्रतिमा लगाई गई है
वर्ष 2007 में भारत दौरे पर आए तत्कालीन
जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने दिल्ली
में उनके परिवार के सदस्यों से मुलाकात भी
की थी
जापानी युद्धबंदियों को बचाने के लिए राधा
विनोद पाल के ऐतिहासिक निर्णय के कारण चीन
की सरकार उनसे बेहद नफ़रत करती थी चीन
नहीं चाहता था कि दूसरे विश्व युद्ध के
जापानी आरोपियों के साथ कोई भी नरमी बरती
जाए यही कारण था कि स्वतंत्रता के बाद
भारतीय इतिहास लिखने वाले नेहरूवादी
चाटुकारों ने राधा विनोद पाल के पू यो यो
दान को किताबों से गायब कर दिया भारतीय
इतिहास की पुस्तकों में आपको उनका नाम तक
नहीं मिलेगा जबकि जापान में उन्हें एक
नेशनल हीरो की तरह देखा जाता है
जापान में चले इस मुकदमे पर वर्ष 2016 में
एक टेलीविजन सीरीज भी बनाई गई थी जिसमें
राधा विनोद कौल की भूमिका इरफान खान ने
निभाई थी
कि राधा विनोद कौल उस भारतीय प्रतिभा का
प्रतीक है जिन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता के
दम पर विश्व भर में पहचान बनाई यह देश का
दुर्भाग्य है कि आज अधिकांश लोग उनको
जानते तक नहीं।
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