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भारतीय मुसलमानों का मनोविज्ञान।


 


वीर सावरकर को लेकर हिंदुओं में तो दो मत 
हो सकते हैं जो उन्हें पसंद करता है जो 
उन्हें गाली देता है 
आज भी सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी 
थी इस झूठ को प्रचारित करने वालों में 
सबसे अधिक संख्या हिंदुओं की ही है लेकिन 
मुसलमानों में उन्हें लेकर कोई दो राय 
नहीं है जिसने कभी उनका नाम भी न सुना हो 
उसे भी पता है कि सावरकर को गाली देने है 
प्रोफेसर से लेकर पंचर वाले तक आपको बता 
देगा कि सावरकर अंग्रेजों से मिल गए थे 
लेकिन अंग्रेजों से मिलीभगत करके देश 
तोड़ने वाले मोहम्मद अली जिन्ना के खिलाफ 
किसी कथित देशभक्त भारतीय मुसलमान से आप 
एक शब्द नहीं खुलवा सकते 
वैसे ही जैसी नरेंद्र मोदी को लेकर 
हिंदुओं में कई विचार हो सकते हैं अच्छे 
प्रधानमंत्री खराब प्रधानमंत्री बहुत खराब 
प्रधानमंत्री कई राय हो सकती हैं लेकिन 
मुसलमानों की एक मथुरा यह है कि नरेंद्र 
मोदी को हराने के लिए वोट करना है भले ही 
वह प्रधानमंत्री द्वारा चलाई गई योजनाओं 
का लाभ लेने में सबसे आगे हैं भले ही 
नरेंद्र मोदी एक हाथ में कंप्यूटर एक हाथ 
में दौरान जैसी अच्छी-अच्छी बातें बोलकर 
उन्हें खुश ड प्रयास करते रहें हैं कि 
भारत के मुसलमानों का यह क्लियर विजन की 
है चुनाव से पहले सोनिया गांधी से लेकर 
ममता बनर्जी तक को हाथ जोड़कर कहना पड़ता 
है एक मुक्त होकर हमें ही वोट डालिए गा एक 
समुदाय के तौर पर मुसलमानों की ऐसी एकमत 
राय के पीछे कोई नेता या पार्टी के प्रति 
उनकी पसंद जिम्मेदार नहीं है उन्नीस सौ 
चालीस के दशक में तो भारतीय मुसलमान गांधी 
जी का मुंह तक देखने को तैयार नहीं थे 
गांधी जी आखिरी सांस तक मुसलमानों की 
खुशामद करते रहे इस हद तक कि उन्होंने खुद 
को हिंदुओं का शत्रु ही बना लिया है 
बंटवारे और उसके बाद लाखों हिंदुओं का 
नरसंघार गांधी जी चुपचाप देखते रहे 
मुसलमान तो मौलाना आजाद की अध्यक्षता वाली 
कांग्रेस की सरकार में भी बराबर का नागरिक 
बनने को तैयार नहीं हुई इसलिए अलग देश 
बनाया लेकिन आज सारे भारतीय मुसलमान आपको 
गांधी समर्थक और गोडसे को गाली देते 
मिलेंगे वह अलग बात है कि आज भी अहिंसा और 
शाकाहार को लेकर उनके बीच विरोधी विरोधी ही है 
1940 हो या आज का समय मुसलमानों को पता है 
कि कब गांधी का विरोध करना है कब समर्थन 
कब कांग्रेस का विरोध करना है कब समर्थन 
ऐसा एक मत विचार और राजनीतिक समझ उन्हें 
विलक्षण समुदाय बनाती है 
उनके लिए किसी पार्टी का समर्थन या विरोध 
करने का एक ही आधार है कि वह इस्लाम के 
प्रसार में सहायक है या नहीं तो जब जिन्ना 
और गांधी में चुनाव हो तो जिन्ना को 
समर्थन है और जब गांधी और सावरकर ने चुनाव 
हो तो गांधी का समर्थन है 
कि कल अगर कोई बेहतर विकल्प मिला जो 
इस्लाम के प्रसार को पेश कर सके तो उसके 
पास चले जाएंगे जैसे वह कांग्रेस आरजेडी 
और समाजवादी पार्टी को छोड़कर ओवैसी के 
पास जा ही रहे हैं और इसका आधार और 
सुरक्षा की भावना नहीं है अगर ऐसा होता तो 
हिंदू जम्मू और कश्मीर में आज तक नेशनल 
कांफ्रेंस को या पंजाब में अकाली दल को 
वोट नहीं कर रहे होते जिन सात आठ राज्यों 
में हिंदू अल्पसंख्यक हैं वहां कब कि 
भाजपा हिंदू वोट पा चुकी होती और इसके 
पीछे जो समझ है वह मजहब से आती है जैसा कि 
इकबाल ने लिखा था 
कि चीन और अरब हमारा हिंदोस्तां हमारा 
मुस्लिम है हम वतन है सारा जहां हमारा तो 
जब तक नरेंद्र मोदी डॉनल्ड ट्रंप इंवोल्व 
हों जैसे नेताओं और इजरायल जैसी दूर 
रहेंगे इशारा जहां हमारा कैसी हो पाएगा 
इसलिए उन्हें पता है किसको किस मात्रा में 
कितनी गाली कब तक दिन है अ 

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